अध्याय ८: छुआछूत की व्यवसायजन्य उत्पत्ति

श्री स्टैनली राइस के इस सिद्धान्त के अनुसार छुआछूत का कारण अछूतों के गंदे और अपवित्र पेशों से उपजता है। ये सिद्धान्त तार्किक लगता है। मगर इस तरह के पेशे दुनिया के हर समाज में पाये जाते हैं तो दूसरी जगहों पर उन्हे अछूत क्यों न समझा गया?

नारद स्मृति से पता चलता है कि आर्य स्वयं इस प्रकार के गंदे कार्य करते थे। नारद स्मृति के अध्याय ५ में कहा है कि पवित्र काम करने के लिये अन्य सेवकों का इस्तेमाल किया जाय जबकि अपवित्र काम जैसे झाड़ू लगाना, कूड़ा व जूठन उठाना, और शरीर के अंगो की मालिश करना दासों के विभाग में आता है। शेष काम पवित्र है जो अन्य सेवकों द्वारा किये जा सकते हैं।

सवाल उठता है कि ये दास कौन थे? क्या वे आर्य थे या अनार्य थे? आर्यों मे दास प्रथा थी और किसी भी वर्ण का आर्य दास हो सकता था। दास होने के पंद्रह तरीके नारद स्मृति में अलग से बताये हैं। और दास प्रथा के बारे में याज्ञवल्क्य ने कहा है कि यह प्रतिलोम क्रम से नहीं अनुलोम क्रम से लागू होती है। इसी पर विज्ञानेश्वर ने मिताक्षरी में व्याख्या करते हुए बताया है कि शूद्र का दास सिर्फ़ शूद्र हो सकता है जबकि एक ब्राह्मण, शूद्र वैश्य क्षत्रिय और ब्राह्मण सभी को दास बना सकता है। लेकिन एक ब्राह्मण सिर्फ़ ब्राह्मण का ही दास हो सकता है।

एक बार दास बन जाने के बाद दास के लिये नियत कर्तव्यों में जाति की कोई भूमिका न होती। दास चाहे ब्राह्मण हो या शूद्र उसे झाडू़ लगानी ही होगी। एक ब्राह्मण दास एक शूद्र के घर भले ही भंगी का काम न करे पर उस ब्राह्मण के घर तो करेगा ही जिसका वह दास है। अतः यह साफ़ है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, जो कि आर्य हैं, गंदे से गंदा, भंगी का काम करते हैं। जब यह काम एक आर्य के लिये घृणित नहीं था तो कैसे कहा जा सकता है कि गंदे और अपवित्र पेशे छुआछूत का आधार बन गये? इसलिये छुआछूत का व्यवसायजन्य उतपत्ति का सिद्धान्त भी खारिज करने योग्य है।

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

मेरी समझ में प्रत्येक मनुष्य में चारो वर्ण उपस्थित हैं यानि वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी है| क्योंकि वह अपना शोच स्वयं साफ करता है न कि किसी से कराता है, इसलिए शूद्र हुआ| इसी प्रकार उसके घर में उपलब्ध सभी वस्तुओं तथा धनादि कि रक्षा भी करता है, जो कि क्षत्रिय का काम है, इसलिए क्षत्रिय हुआ| और यदि कोई वस्तू खरीदने या बेचने का काम भी वह खुद ही करता है जो कि वैश्य का काम है| और नित्य प्रति वह प्रातः इश वंदना भी करता है अतः ब्राह्मण भी है| फिर भी दुसरे में से तो बदबू आती है, जैसे आप स्वयं पसीने में तर है और बदबू आ रही है तो आप उस को महसूस नहीं करते लेकिन दुसरे के शरीर से आने पर आप नाक मूंह सिकोड़ने लगते हैं|

Unknown ने कहा…

पहले जंगल में शौंच करने जाते थे तो वहां किस दास की जरुरत पड़ती थी ??

Unknown ने कहा…

आधुनिक युग के मनु के पास भी कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि इस घृणा का कारण क्या है ।परन्तु मानव का मानव से घृणा करना मानवता नहीं है ।