मेरा कथन

अछूत: वे कौन थे और वे कैसे अछूत बन गए?

डॉ. बी आर अम्बेदकर की १९४८ की यह रचना काफ़ी चर्चा में रही मगर कम पढ़ी गई है.. सच देखें तो अम्बेदकर के समकालीन गाँधी और नेहरू बड़े लेखकों के रूप में प्रतिष्ठित हैं.. पर चन्द दलित विद्वान और दलित विषयों पर शोध करने वाले विद्यार्थियों के अलावा अम्बेदकर को पढ़ने वाले मिलने मुश्किल हैं.. एक समाज सुधारक, दलित समाज के नेता के तौर पर तो सवर्ण समाज उन्हे गुटक लेता है.. लेकिन विद्वान के रूप में अम्बेदकर की प्रतिष्ठा अभी सीमित है.. उसका सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही कारण है कि वे दलित हैं.. और हमारी जातिवादी, नस्लवादी, साम्प्रदायिक सोच, जिसके बारे में हम स्वयं सचेत नहीं होते, उनके प्रति हमें विमुख रखती है...

मैं खुद ऐसी ही सोच से ग्रस्त रहा हूँ.. हूँ.. पर उस से लड़ने की कोशिश करता हूँ.. इसी कोशिश के तहत मैंने अम्बेदकर साहित्य का अध्ययन करने की सोची.. जब मेरे विद्वान और वरिष्ठ मित्र, गुरुवत भाई कमल स्वरूप (कल्ट फ़िल्म 'ओम दर ब दर' के निर्देशक) ने उनके साहित्य के विषय में कुछ ज्ञान मेरी झोली में उड़ेला.. पुस्तक भी उन्ही से प्राप्त हुई जो अंग्रेज़ी में थी.. शुरुआत उसी से की.. बाद में बोधिसत्व के संकलन से हिन्दी अनुवाद उड़ा कर आगे का अध्ययन किया गया..बजाय इस किताब के बारे में अपनी राय आप के सामने रखने के मैं इस किताब का सार-संक्षेप यहाँ छाप रहा हूँ.. ताकि आप को मोटे तौर पर न सिर्फ़ किताब का सार समझ आ जाये.. और साथ में अम्बेदकर कितने गहरे और सधे तौर पर अपने तर्कों को रखते हैं यह भी समझा जा सके..

12 टिप्‍पणियां:

काकेश ने कहा…

इतने अच्छे प्रयास के लिये साधुवाद।

Satish Saxena ने कहा…

तिवारी जी !
अच्छा लगा कि एक सवर्ण ने आकर इस विषय पर कुछ कार्य शुरू किया ! शुभकामनायें !

drashoktiwari ने कहा…

tiwari ji,
you did a good job !
dr. ashok tiwari

Rangnath Singh ने कहा…

great job

L.Goswami ने कहा…

आज ही आपका यह ब्लॉग देख रही हूँ. बहुत अच्छा कार्य किया है आपने, किसी जिज्ञासु को यह लिंक दिया जा सकता है...धन्यवाद.

निखिल उत्तराखंडी ने कहा…

काफी जानकारी पूर्ण एवं सटीक अनुवाद ! धन्यवाद प्रस्तुतीकरण के लिए

khunt ने कहा…

bahut achha ek sachchayee se rubru karne ke liye

Ajeet Pratap Singh ने कहा…

मैं शुरू से ही आंबेडकर जी का प्रसंशक रहा हूँ और चाहता हू कि उन्हें भी वो सम्मान मिले जो और विद्वानों को मिला है, पर आज कि राजनीती में आंबेडकर जैसा विद्वान भी कथित अछूत और छोटी जातियों में सिमट कर रह गया है, आपका प्रयास सराहनीय है.
आपका आभार
अजीत प्रताप सिंह

Ajeet Pratap Singh ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Milind ने कहा…

Great work! Compliments!

Vijay ने कहा…

Bahut aacha laga. mai aisa sochatahu ki brahamanoka dharma nasta karaneke liye mahabharat udhake bad krishnane vyas ko hukam diya. aur ved granthonke tukade kiye gaye ta ki brahaman nashta ho jaye. lekin aisa nahi huaa. YHWH = I am that Iam = Aham brahamasmi = tat twam asi = Agar mai hi Ishvar/paramatm hun to dusara bhagavan ishvar kahase aaya dhundiye Isi sawalka javab hi brahamanon ki asali sanskrutise hai.

Unknown ने कहा…

अत्यंत लाभदायी प्रयास|