प्रत्येक हिन्दू इस प्रश्न का उत्तर में कहेगा नहीं, कभी नहीं। मान्यता है कि वे सदैव गौ को पवित्र मानते रहे और गोह्त्या के विरोधी रहे।
उनके इस मत के पक्ष में क्या प्रमाण हैं कि वे गोवध के विरोधी थे? ऋग्वेद में दो प्रकार के प्रमाण है; एक जिनमें गो को अवध्य कहा गया है और दूसरा जिसमें गो को पवित्र कहा गया है। चूँकि धर्म के मामले में वेद अन्तिम प्रमाण हैं इसलिये कहा जा सकता है कि गोमांस खाना तो दूर आर्य गोहत्या भी नहीं कर सकते। और उसे रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन, अमृत का केन्द्र और यहाँ तक कि देवी भी कहा गया है।
शतपथ ब्राह्मण (३.१-२.२१) में कहा है; "..उसे गो या बैल का मांस नहीं खाना चाहिये, क्यों कि पृथ्वी पर जितनी चीज़ें हैं, गो और बैल उन सब का आधार है,..आओ हम दूसरों (पशु योनियों) की जो शक्ति है वह गो और बैल को ही दे दें.."। इसी प्रकार आपस्तम्ब धर्मसूत्र के श्लोक १, ५, १७, १९ में भी गोमांसाहार पर एक प्रतिबंध लगाया है। हिन्दुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया, इस पक्ष में इतने ही साक्ष्य उपलब्ध हैं।
मगर यह निष्कर्ष इन साक्ष्यों के गलत अर्थ पर आधारित है। ऋग्वेद में अघन्य (अवध्य) उस गो के सन्दर्भ में आया है जो दूध देती है अतः नहीं मारी जानी चाहिये। फिर भी यह सत्य है कि वैदिक काल में गो आदरणीय थी, पवित्र थी और इसीलिये उसकी हत्या होती थी। श्री काणे अपने ग्रंथ धर्मशास्त्र विचार में लिखते हैं;"
ऐसा नहीं था कि वैदिक काल में गो पवित्र नहीं थी। उसकी पवित्रता के कारण ही वजसनेयी संहिता में यह व्यवस्था दी गई है कि गोमांस खाना चाहिये। "
ऋग्वेद में इन्द्र का कथन आता है (१०.८६.१४), "वे पकाते हैं मेरे लिये पन्द्र्ह बैल, मैं खाता हूँ उनका वसा और वे भर देते हैं मेरा पेट खाने से" । ऋग्वेद में ही अग्नि के सन्दर्भ में आता है (१०. ९१. १४)कि "उन्हे घोड़ों, साँड़ों, बैलों, और बाँझ गायों, तथा भेड़ों की बलि दी जाती थी.."
तैत्तिरीय ब्राह्मण में जिन काम्येष्टि यज्ञों का वर्णन है उनमें न केवल गो और बैल को बलि देने की आज्ञा है किन्तु यह भी स्पष्ट किया गया है कि विष्णु को नदिया बैल चढ़ाया जाय, इन्द्र को बलि देने के लिये कृश बैल चुनें, और रुद्र के लाल गो आदि आदि।
आपस्तम्ब धर्मसूत्र के १४,१५, और १७वें श्लोक में ध्यान देने योग्य है, "गाय और बैल पवित्र है इसलिये खाये जाने चाहिये"।
आर्यों में विशेष अतिथियों के स्वागत की एक खास प्रथा थी, जो सर्वश्रेष्ठ चीज़ परोसी जाती थी, उसे मधुपर्क कहते थे। भिन्न भिन्न ग्रंथ इस मधुपर्क की पाक सामग्री के बारे में भिन्न भिन्न राय रखते हैं। किन्तु माधव गृह सूत्र (१.९.२२) के अनुसार, वेद की आज्ञा है कि मधुपर्क बिना मांस का नहीं होना चाहिये और यदि गाय को छोड़ दिया गया हो तो बकरे की बलि दें। बौधायन गृह सूत्र के अनुसार यदि गाय को छोड़ दिया गया हो तो बकरे, मेढ़ा, या किसी अन्य जंगली जानवर की बलि दें। और किसी मांस की बलि नहीं दे सकते तो पायस (खीर) बना लें।
तो अतिथि सम्मान के लिये गो हत्या उस समय इतनी सामान्य बात थी कि अतिथि का नाम ही गोघ्न पड़ गया। वैसे इस अनावश्यक हत्या से बचने के लिये आश्वालायन गृह सूत्र का सुझाव है कि अतिथि के आगमन पर गाय को छोड़ दिया जाय ( इसी लिये दूसरे सूत्रों में बार बार गाय के छोड़े जाने की बात है)। ताकि बिना आतिथ्य का नियम भंग किए गोहत्या से बचा जा सके।
प्राचीन आर्यों में जब कोई आदमी मरता था तो पशु की बलि दी जाती थी और उस पशु का अंग प्रत्यंग मृत मनुष्य के उसी अंग प्रत्यंग पर रखकर दाह कर्म किया जाता था। और यह पशु गो होता था। इस विधि का विस्तृत वर्णन आश्वालायन गृह सूत्र में है।
गो हत्या पर इन दो विपरीत प्रमाणों में से किस पक्ष को सत्य समझा जाय? असल में गलत दोनों नहीं हैं शतपथ ब्राह्मण की गोवध से निषेध की आज्ञा असल में अत्यधिक गोहत्या से विरत करने का अभियान है। और बावजूद इन निषेधाज्ञाओं के ये अभियान असफल हो जाते थे। शतपथ ब्राह्मण का पूर्व उल्लिखित उद्धरण (३.१-२.२१) प्रसिद्ध ऋषि याज्ञवल्क्य को उपदेश स्वरूप आया है। और इस उपदेश के पूरा हो जाने पर याज्ञ्वल्क्य का जवाब सुनने योग्य है; "मगर मैं खा लेता हूँ अगर वह (मांस) मुलायम हो तो।"
वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों के बहुत बाद रचे गये बौद्ध सूत्रों में भी इसके उल्लेख हैं। कूट्दंत सूत्र में बुद्ध, ब्राह्मण कूटदंत को पशुहत्या न करने का उपदेश देते हुए वैदिक संस्कृति पर व्यंग्य करते हैं, " .. हे ब्राह्मण उस यज्ञ में न बैल मारे गये, न अजा, न कुक्कुट, न मांसल सूअर न अन्य प्राणी.." और जवाब में कूटदंत बुद्ध के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है और कहता है, ".. मैं स्वेच्छा से सात सौ साँड़, सात सौ तरुण बैल, सात सौ बछड़े, सात सौ बकरे, और सात सौ भेड़ों को मुक्त करता हूँ जीने के लिये.. "
अब इतने सारे साक्ष्यों के बाद भी क्या किसी को सन्देह है कि ब्राह्मण और अब्राह्मण सभी हिन्दू एक समय पर न केवल मांसाहारी थे बल्कि गोमांस भी खाते थे।
अध्याय ११: क्या हिन्दू कभी गोमांस नहीं खाते थे?
Labels:
अंबेदकर,
अछूत,
अमबेडकर,
अम्बेडकर,
अम्बेदकर,
छुआछूत,
दलित,
Ambedkar,
Dalit,
untouchability,
Untouchables,
untouchablity
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
16 टिप्पणियां:
........unfortunate yahi hai ki aap jaise hindu hi apne aap ko jyada gyani aur neeti ka jaankaar sabit karne ke liye dharma aur ved ki galat vyakkhaya karte aaye hain jisase ek jahni kism ka bhram failta hai jo gair majhabiyon ko bal deta hai.....problem ye nahi hai ki tum jaise logon ki knowledge es baare me adhkachari hai balki problm ye bhi hai ki aap jaise log GAU-MAASS khana chhod hi nahi sakte aur tark dete hain...........afsos hai afsos hai
Dr. Shashank ne sahi kaha hai. Aapko hindu dharma aur vedik sanskriti ke bare knowledge nahi hai.So please firstly change your mind and study the vedik sanskriti. Ashwani
dr. sahab ki comments sahi hai aap jaise logo k karan hindu dharma itna jirna shirna awastha me pahuch gaya hai aur dusre dharma age bad rhae hai kyuki wo apne dharmo ki bhalai ka kaam karte hai uska is tarah majak nai udate
ऊपर विचार लिख्र वाले सभी हिंदू प्रेमी महानुभवों से एक साधारण सा प्रश्न है जो कि लेखक (जो कि इस ब्लॉग के लेखक तिवारी जी नहीं अपितु अम्बेडकर हैं )के वेदों के ज्ञान पर प्रश्न उठा रहे हैं ,क्या आप सभी ने स्वयं सारे वेद,उपनिषद,पुराण,पतिकाएं और मनु स्मृति पढ़ी है ???????????
मै अम्बेडकर जी के मत से सहमत हूँ, मेरा भी आप से अनुरोध है की पहले इन किताबो का अध्यन करे. मनु स्मृति में कई जगहों पर ये कहा गया है की ब्रह्मण मांस का व्यापार करते है , तो प्रश्न ये उठता है की जो मांस बेच सकता है वो खा नहीं सकता?
और इस तरह के चर्चा से धर्म की हानी नहीं होती बल्कि धर्म और मजबूत होगा, जो बूराइयाँ है वो शायद दूर हो. रही बात वैसे लोगो की जो हमारे धर्म पर ऊँगली उठाते है तो उसके लिए आप अपने आप को तैयार कीजिये.
aap sabhi se anurodh hai ki pahle vedik adayan kijiye uske badh hi kuch kahna .arya kabhi mans nahi khate . chahe vo kesa bhi mans ho. ye subh chotemansikta vale logo ki soch hai ki arya mans khte hai.
arya to mans khane or khilane valo ke virothi hai. vedh ke ander ak slok aata hai ki jesa aadmi ka aahar hoga vese hi uake vichar hoge or jese vishar hoge vesa hi uska parchar hoga.esliye pahle apna aahar badlo. simple bhogan karo or deshbadlo.
danyawad
dr ambedkar sahab ne jo baten kahin hai wo tark ki kashoti par kahin hai.agar koi ese galat kahta hai to jo slok ,uhahran dr sahab ne diye hai usko tark ki kashoti par kaskar dekho .
madhyapradesh ke grameed chhetron me brahmmano ke yanhan par shadi hoti hai to wo aate ki gay out bel banakar usaka wadh karte hai .ye pratha kya esh bat ko sabit nahi karti .........
मैंने गीत में पढ़ा है की -
कोई भी मनुष्य चाहे वो ब्राह्मण हो या शुद्र अच्छा या बुरा नहीं होता, उसके कर्म अच्छे या बुरे होते है ।
अब सवाल यह उत्पन्न होता है की ' गौ मांस खाना अच्छा कर्म है या बुरा कर्म ? '
सभी महानुभावो से निवेदन है
कृपया इस प्रश्न का तर्क पूर्ण उत्तर दे अन्यथा अपना क़ीमती समय बर्बाद न करे. . .!
(धन्यवाद !)
मोहित चौहड़िया
इंदौर म.प्र.
m.chouhadiya@gmail.com
आंबेडकर स्वयं कहतें हैं मुझे संस्कृत नही आती।
वे इन ग्रंथों के अध्ययन के लिए विदेशी अनुवादकों के लिखे अंग्रेजी अनुवाद पर निर्भर थे।
जिन अंग्रेजों के कुअर्थ लगाये जानबूझकर और उनके अंग्रेजी कुअर्थ को बिना मूल संस्कृत के ग्रन्थ देखें अंबेडकर अपने लेखों में उद्धरित करते हैं तो बुद्धि की बलिहारी हैं।
sir surname tiwari rakha hai ya sach me tiwari hai aur agar hai to apane dharm grantho ka gahan addhayan kar aur apana mat rakh duniya ke samane yun dusaro k vichar post na kar . har insan apani jagah se har chij dekhata hai aur har ek ka apana vichar uske liye hota hai iska matlab ye nahi ki wo sach hi hai sach kuchh aur bhi ho sakata hai
sir surname tiwari rakha hai ya sach me tiwari hai aur agar hai to apane dharm grantho ka gahan addhayan kar aur apana mat rakh duniya ke samane yun dusaro k vichar post na kar . har insan apani jagah se har chij dekhata hai aur har ek ka apana vichar uske liye hota hai iska matlab ye nahi ki wo sach hi hai sach kuchh aur bhi ho sakata hai
हां, मैंने पढ़े है, और अमित शर्मा जी ने एकदम सही फरमाया है, आम्बेडकर महान थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं की उनकी कही हर बात पत्थर की लकीर हो
जिस मनु स्मृति की वजह से दलित और ब्राह्मण प्रब पश्चिम हुए, जिस मनु स्मृति की वजह से भारत के लोग आपस में ही छूत अछूत करते रहे, वह मनु स्मृति असल है ही नहीं ,,,,,, हिन्दू धर्म ग्रंथों में जितनी भी त्रुटिया दिखाई देती है, वह सभी अंग्रेज़ो की दें है,,,,,,,,,,
विवेकानंदजी ने एक बार अपने प्रवचन में कहा था कि अगर वेद मुझे गोहत्या करने को कहेंगे तो में उन वेदों को समंदर में फेंक दूंगा, लेकिन मुझे अपने धर्मग्रंथो पर पूरा विश्वास है कि वह मुझे ऐसा कहेंगे ही नहीं,,,,,,,,,
यह फर्क है विवेकानंद और आम्बेडकर में,
अस्तु ।
डॉ॰ आंबेडकर चाहते थे कि शूद्रों को, हरिजनों (दलितों) को अलग मताधिकार प्राप्त हो जाए। काश डॉ॰ आंबेडकर जीत गए होते तो जो बदतमीज़ी सारे देश में हो रही है वह नहीं होती…. लेकिन महात्मा गांधी ने उपवास कर दिया…. उन्होंने उपवास कर दिया कि मैं मर जाऊँगा, अनशन करदूँगा…. उनका लंबा उपवास, उनकागिरता स्वास्थ्य, डॉ॰ आंबेडकर को आखिर झुक जाना पड़ा…. मत दे अलग मताधिकार। और इसको गाँधीवादी इतिहासकार लिखते हैं-अहिंसाकी विजय…. अब यह हैरानी की बात है इसमें अहिंसककौन है? डॉ॰ आंबेडकर अहिंसक है….. इसमें गाँधी हिंसक है। उन्होंने डॉ॰ आंबेडकर को मजबूर किया हिंसा की धमकी देकरकि मैं मर जाऊँगा…. एक आदमी तुम्हारी छाती पर छुरा रख देताहै और कहता है जेब में जो कुछ हो- यह हिंसा। और एक आदमी अपनी छाती पर छुरा रख लेता है वह कहता है निकालो जो कुछ जेब में हो अन्यथा मैं मार लूँगा छुरा।तुम सोचने लगते हो कि दो रुपल्ली जेब में है, इसके पीछे इस आदमी का मरना। भला चंगा आदमी है, एक जीवन का खो जाना. तुमने दो रुपए निकाल कर दे दिए कि भइया, तू ले ले और जा…. इसमें कौन अहिंसक है? मैं कहताहूँ डॉ॰ आंबेडकर अहिंसक है, गांधी नहीं…..।"
एक टिप्पणी भेजें